Friday, December 13, 2013

"शुभकामना सन्देश" उत्कर्ष मेल

"शुभकामना सन्देश"


उत्कर्ष मेल सिफ एक साधारण अखबार न होकर , एक अत्यंत ही रूहानी और रोमांचक साहित्यक पत्रिका से किसी भी प्रकार कम नहीं है. अखबार में सामाजिक ख़बरों के साथ साथ साहित्य गतिविधियों को यथावत स्थान देना और पाठकों की रूचि बनाये रखना बेहद ही कठिन और चुनोतिपूर्ण कार्य है. आज उत्कर्ष मेल अनेक रचनाकारों के लिए अभिव्यक्ति का बेहद शशक्त स्रोत बन गया है. एक से एक अनूठी रचनाएँ और अन्य मनोरंजन की सार्थक सामग्री से परिपूर्ण उत्कर्ष मेल अपने आप में एक पठनीय और सराहनीय समाचार पत्र बन गया है, जिसका मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहता है.

आज की कठिन पर्तिस्पर्धा के युग में जहां समाचरपत्र और पत्रिकाओं को अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है, ऐसे में उत्कर्ष मेल की बेहद ही अनूठी और रोमांचक प्रस्तुती के कारण अपना गौरव कायम है , संपादक जी का साहित्य के प्रति उनकी आस्था और निस्वार्थ समपर्ण को मेरा सलाम .
आदरणीय संपादक जी और उनकी पूरी टीम को हार्दिक बधाई इतनी शानदार पेशकश पर. नये पुराने रचनाकारों से परिचय कराने और उनसे जुडी विस्तृत जानकारी देने में आप सभी का ये प्रयास अत्यंत सराहनीय है. उत्कर्ष मेल दिन बा दिन उचाईयों के नये आयाम स्थापित करे इन्ही शुभकामनाओ के साथ ..

दीप मल्लिका दीपावली -समस्त देशवासियों के लिए सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए.."

"शिकवे ,गिले ,शिकायतें सब भूल जाएँ हम ,
कुछ इस तरह से प्यार के दीपक जलाएं हम"
 —

Saturday, November 9, 2013

"हथेली पे उतारा हमने" published in "SAADAR INDIA" Oct 2013

Nazm Published in "SAADAR INDIA" Oct 2013 

"हथेली पे उतारा हमने" 

रात भर चाँद को चुपके से 
हथेली पे उतारा हमने 
कभी माथे पे टिकाया 
कभी कंगन पे सजाया 
आँचल में टांक के मौसम की तरह 
अपने अक्स को संवारा हमने 

रात भर चाँद को चुपके से 
हथेली पे उतारा हमने 
सुना उसकी तन्हाई का सबब 
कही अपनी दास्तान भी 
तेरे होटों की जुम्बिश की तरह 
पहरों दिया सहारा हमने 

रात भर चाँद को चुपके से 
हथेली पे उतारा हमने 
अपने अश्को से बनाके 
मोहब्बत का हँसीं ताजमहल 
तेरी यादों की करवटों की तरह 
यूँ हीं एक टक निहारा हमने 

रात भर चाँद को चुपके से 
हथेली पे उतारा हमने 

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Raat bhar chaand ko chupke se
Hatheli pe utara humne, 
kabhi mathe pe tikaya,
kabhi kangan pe sajaya
AaNchal meiN taaNk ke mausam ki tarah,
apne aks ko saNwara humne

Raat bhar chaand ko chupke se
Hatheli pe utara humne
suna uski tanhayi ka sabab,
kahi apni daastaan bhi,
tere honthoN ki jumbish ki tarah,
pehroN diya sahara humne

Raat bhar chaand ko chupke se
Hatheli pe utara humne
apne ashkoN se banake ,
Mohabbat ka haNsi Tajmahal
teri yaadoN ki karwatoN ki tarah
YuNhi ek tak nihara humne
Raat bhar chaand ko chupke se
Hatheli pe utara humne-

Monday, October 28, 2013

SEEMA GUPTA KI EK GHAZAL KA ADBI JAIZA BY DR. RAHAT MAZAHIRI Published in " AZIZULHIND" FROM DELHI.

SEEMA GUPTA KI EK GHAZAL KA ADBI JAIZA BY DR. RAHAT MAZAHIRI is being Published today i.e 28th Oct 2013 Monday  in a leading Urdu news paper " AZIZULHIND" FROM DELHI.

Sunday, October 27, 2013

Literary Review of My Poetry/ Ghazals published today i.e 27th Oct 2013 in a leading Urdu news paper " AZIZULHIND" Delhi

A Beautiful Literary Review of My Poetry/ Ghazals is being published today i.e 27th Oct 2013 in a leading Urdu news paper " AZIZULHIND" FROM DELHI  by Aslam Chishti ji along with other Poets .

Thursday, October 24, 2013

नज़्म --------- "अश्को के घुंघरू "

Poetry Published in Literary Magazine "DAWAT_O_TABLEEGH (Delhi), Edition- OCT_DEC 2013
नज़्म 
---------
"अश्को के घुंघरू "

धडकनों के अनगिनत जुगनू
कहाँ सब्र से काम लेते हैं
चारो पहर खुद से उलझते हैं
तेरे ही किस्से तमाम होते हैं
लम्हा लम्हा तुझको दोहराना
यही एक काम उल्फत का
हवाओं के परो पर लिखे
इनके पैगाम होते हो
कभी बेदारियां खुद से
कभी शिकवे शिकायत भी
तेरी यादो की शबनम में
मेरे अश्को के सब घुंघरू
तबाह सुबह शाम होते हैं
धडकनों के अनगिनत जुगनू
कहाँ सब्र से काम लेते...

Monday, October 7, 2013

"नर्म लिहाफ़" Poetry Published in 'अनहद कृति" (September 2013 )

"नर्म लिहाफ़"

नर्म लिहाफ़
--------------
सियाह रात का एक क़तरा जब
आँखों के बेचैन दरिया की
कशमकश से उलझने लगा,
बस वही एक शख्स अचानक
मेरे सिराहने पे मुझसे आ के मिला|

मैं ठिठक कर उसके एहसास को
छूती टटोलती आँचल में छुपा
रूह के तहख़ाने में, सहेज लेती हूँ
कुछ हसरतें नर्म लिहाफ़ में
डूबके मचलने लगती हैं,
जब वही एक शख्स अचानक
मेरे सिराहने पे मुझसे आ के मिला|

कुछ मजबूरियों की पगडंडियाँ
जो मेरे शाने पे उभर आती हैं,
अपने ही यक़ीन के स्पर्श की
सुगबुगाहट से हट,
चाँद के साथ मेरी हथेलियों में
चुपके-चुपके से सिमटने लगती हैं,
सच वही बस वही एक शख्स जब अचानक
मेरे सिराहने पे मुझसे आ के मिला।


Friday, June 14, 2013

''हस्तक्षेप '' में मेरी ग़ज़ल और नज़्म

Poetry Published in " Hastkshep" May 2013. 
मई 2013 के प्रवेशांक ''हस्तक्षेप '' में  मेरी ग़ज़ल और नज़्म को  स्थान मिला .  सम्पादक जी का दिल से शुक्रिया 

नज़्म 
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ऐ जाने  -जहां  ...
है तेरा ही ख्याल 
तु मेरा शोक़ है कहाँ 
तेरा शोके- तमाशा हूँ मैं 
मेरे ज़ब्त का मुदावा है तु मगर   
दश्ते  -दिल में उतर आई है 
फ़िराक के लम्हों की रौनकें कितनी   
इक आलमे - बेक़रारी में 
निगाह गाफ़िल है तुझसे  
मुझ   में तुझ से   खुलते तो है 
मजबूर तकाजों के दरीचे लेकिन 
अब मैं हूँ तुझ से वाबसता 
मेरी तन्हाई है 
भीगी हुई रात का फूसुं है हर सू 
लरजते रहते हैं मेरी पलकों पर 
तेरी याद के शबनमी मोती 
ऐ जाने  -जहां  ...

.

 NAZM
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E- jaane- JahaN......
 hai tera hi khyaal 
tu mera shouq hai kahan 
tera Shoq-e-tamaasha hun main
Mere zabt ka mudaava hai tu magar  
Dasht-E-Dil Mein utar aaye hai 
Firaaq Lamho'n ki ronake'n kitni 
ek aalme- beqarari mein
nigah  gaafil hai tujse....
mujh main tujh se khulte toh hai 
Majboor Taqazo'n ke dreeche  lekin
ab mein hun tujh se vabstaa
meri tanhai hai
bheegi hui raat ka fusu'n hai har su
larjte rehte hain meri palkon par
teri yaad ke shabnmi moti
 E- jaane- JahaN......

Saturday, June 1, 2013

Poetry Published in a one of famous literary magazine ""Hindi Pushp" from Australia victoria" June2013 edition

"झील को दर्पण बना"

रात के स्वर्णिम पहर में
झील को दर्पण बना
चाँद जब बादलो से निकल
श्रृंगार करता होगा
चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी...

मस्त पवन की अंगडाई
दरख्तों के झुरमुट में छिप कर
परिधान बदल बदल
मन को गुदगुदाती तो होगी.....

नदिया पुरे वेग मे बह
किनारों से टकरा टकरा
दीवाने दिल के धड़कने का
सबब सुनाती तो होगी .....

खामोशी की आगोश मे रात
जब पहरों में ढलती होगी
ओस की बूँदें दूब के बदन पे
फिसल लजाती तो होगी ......

दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....

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"jheel ko darpan bnaa'"

raat ke swarnim pahar me'n
jheel ko darpan bnaa
chand jaab badlo'n se nikal
shrangaar karta hoga
chandni ka odh anchal
dhra bhi itraati toh hogi.....
  
mast pavan ki angdaai
drakhto'n ke jhurmut me'n chup kar
paridhan badal badal 
maan ko gudgudati toh hogi......
  
nadiya pure veg me'n beh
kinaor'n se takra takra
diwane dil ke dhrkne kaa
sabab sunati toh hogi.......
  
khamoshi ki aagosh me raat
jab pahro'n me'n dhalti hogi
oos ki bunde'n dub ke badan pe
fisal lajati toh hogi........
  
dur bajti kisi bansi ki dhun
payal runjhun or sargam
anjaani si koi aahat aakar

tumhe meri yaad dilati toh hogi......

Sunday, May 26, 2013

Ghazal published in " Inquilab urdu daily news paper" today 26 th May 2013

Ghazal published in " Inquilab urdu daily news paper" today 26 th May  2013
(http://epaper.inquilab.com/epaperhome.aspx?issue=26052013&edd=Delhi)
Aaag  pani bhi hay matti hay hawa hay mujh mein
mere khalik  ka koi raaz chupa hai mujh mein
Ho na jaaye taho-bala kahin duniya sari
aik tufan-e-bala kheez chupa hai mujhe main
Mere Afkaar bikherenge uzale ek din
ek jalta hua deepak jo rakha hai mujh mein
uska kar roop nigahon mein basa hai meri
uska har rang bhi sadiyon se raha hai mujh mein
Rok leti hoon kadam khood hi galat  raho'n se
aisa lagta hai koi mujhse bada hai mujh mein
ek muddat se vo khamosh hai "seema" lakin
ek muddat se vahi cheekh raha hai mujh mein
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आग-पानी भी है मिट्टी है हवा है मुझमें
मेरे खालिक का कोई राज़ छुपा है मुझमें ।
हो न जाए तहो -बाला कहीं दुनिया सारी ,
एक तूफ़ाने -बला ख़ेज़ bapa  मुझमें ।
मेरे अफ़्कार बिखेरेंगे उजाले इक दिन ,
एक जलता हुआ दीपक जो रखा है मुझमें ।

उसका हर रूप निगाहों में बसा है मेरी ,
उसका हर रंग भी सदियों से रहा है मुझमें ।
रोक लेती हूँ क़दम खुद ही ग़लत राहों से ,
ऐसा लगता है कोई मुझसे बड़ा है मुझमें ।
एक मुद्दत से वो ख़ामोश है सीमा लेकिन
एक मुद्दत से वही चीख़ रहा है मुझमें ।

Thursday, February 7, 2013

गुफ्तगू के मार्च-2013 अंक का कवर


गुफ्तगू के मार्च-2013 अंक का कवर


"POETRY PUBLISHED IN ONE OF LITERARY MAGAZINE "SANSKAAR SARTHI " JANUARY -2013 (DELHI)"

"POETRY PUBLISHED IN ONE OF LITERARY MAGAZINE "SANSKAAR SARTHI " JANUARY -2013 (DELHI)"


'दर्द हूँ मैं "---------------------
अश्कों से नहाया,
लहू से श्रृंगार हुआ,
सांसों की देहलीज पर कदम रख,
धडकनों से व्योव्हार हुआ,

लबों की कम्पन से बयाँ..
जख्म की शक्ल मे जवान हुआ..
कभी जिस्म पे उकेरा गया,
सीने मे घुटन की पहचान हुआ,
रगों मे बसा, 
लम्हा लम्हा साथ चला,
कराहों के स्वर से विस्तार हुआ,
हाँ, दर्द हूँ मै , पीडा हूँ मै...
मेरे वजूद से इंसान कितना लाचार हुआ....

Poetry published in "KHABARYAR hindi newspaper" 29th Jan 2013 Bhopal

Poetry published in "KHABARYAR hindi newspaper" 29th Jan 2013 Bhopal


"नसीब"

कुछ सितारे
मचल के जिस पहर
रात के हुस्न पे दस्तक दें
निगोड़ी चांदनी भी लजाकर
समुंदर की बाँहों में आ सिमटे
हवाओं की सर्द ओढ़नी
बिखरे दरख्तों के शानों पे
उस वक़्त तू चाँद बन
फलक की सीढ़ी से फिसल जाना
चुपके से मेरी हथेलियों पर
वो नसीब लिख जाना
जिसकी चाहत में मैंने
चंद साँसों का जखीरा
जिस्म के सन्नाटे में
छुपा रखा है ...
----------------------
"चांदनी पीती रही"

आँखे सुराही घूंट घूंट
चांदनी पीती रही
इश्क की बदनाम रूहें
अनकहे राज जीती रही
रात रूठी बैठी रही
नाजायज ख्वाब के पलने झुला
नींद उघडे तन लिए
पैरहन खुद ही सीती रही
हसरतों के थान को
दीमक लगी हो वक़्त की
बेचैनियों के वर्क में
उम्र ऐसी बीती रही
आँखे सुराही घूंट घूंट

चांदनी पीती रही

Tuesday, January 8, 2013

Poetry Published in a one of famous literary magazine ""Hindi Pushp" from Australia victoria" Jan 2013 edition

Poetry Published in a one of famous literary magazine ""Hindi Pushp" from Australia victoria" Jan 2013 edition




"Mrigtrishna "
................
Kaisi yeh mrig trishna meri
dundha tumko takdiron mein
chanda ki sab tehriron mein
hathon ki dhundhli lakeeron mein
mojud ho tum mojud ho tum
in ankhon ki tasweeron mein
kaisi ye.............
ambar k jhilmil taron mein
sawan mein rimjhim fawaron mein
lehron k ujlay kinaron mein
tumko paya tumko paya
prem vireh ashrudharon mein
kaisi ye .................
dhundha tumko din raaton mein
khwabon khyalon zazbaton mein
uljhay se kuch swalaton mein
baste ho tum baste ho tum
sanson ki lai mein baaton mein
kaisi ye .......................
dhundi sab khamosh addayein
gumsum khoyi khoyi sadayein
bojhal saansen gram hawayein
mujhe dikhe tum mujhe dikhe tum
haraf baney jab uthi duaen
kaisi ye .............
मृगतृष्णा 
................
कैसी ये मृगतृष्णा मेरी
ढूँढ़ा तुमको तकदीरों में
चन्दा की सब तहरीरों में
हाथों की धुँधली लकीरों में
मौजूद हो तुम मौजूद हो तुम
इन आखों की तस्वीरों में


कैसी ये ......................

अम्बर के झिलमिल तारों में
सावन में रिमझिम फुहारों में
लहरो के उजले किनारों में
तुमको पाया तुमको पाया
प्रेम-विरह अश्रुधारों मे

कैसी ये.........................

ढूँढ़ा तुमको दिन रातो में
ख्वाबों ख्यालों जज्बातों में
उलझे से कुछ सवालातों में
बसते हो तुम बसते हो तुम
साँसों की लय में बातों में
कैसी ये..........................

ढूँढी सब खमोश अदायें
गुमसुम खोयी खोयी सदायें
बोझिल साँसें गर्म हवायें
मुझे दिखे तुम मुझे दिखे तुम
हर्फ बने जब उठी दुआऐं

कैसी ये मृगतृष्णा मेरी

कैसी ये.....................
   —