Wednesday, December 3, 2014

Poetry Published in Literary Magazine 'अनहद कृति" Edition 2nd OCT 2014

" नज़्म " "मोहब्बत मोम होती है "
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सुना है उसकी आँखों से 
हमेशा बर्फ गिरती है
वो जब खामोश होती है
क़यामत काँप जाती है
वो अपने पावं के छालों पे
मरहम भी नहीं रखती
वो अपने जिस्म -ओ - जां में
इश्क़ की सरहद नहीं रखती
उसे मतलब नहीं
बाम-ए-फ़लक के चाँद तारों से
उसे तो रब्त है
सदियों पुराने ग़म गुसारों से
कोई तो उसको समझाए
मोहब्बत मोम होती है
कभी ऐसा भी होता है
मोहब्बत में
मोहब्बत से
मोहब्बत टूट जाती है
मोहब्बत......... टूट ........................... जाती है
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"Nazm"
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Suna hai uski aankhon se
hmesha barf girti hai
wo jab khaamosh hoti hai
Qayamat kaanp jaati hai
wo apne paon ke chaalo'n pe
Marham bhi nahi rakhti
wo apne jism-o-jaan pe
ishq ki sarhad nahi rakhti
use matlab nahi'n
baam-e-falak ke chaand taro'n se
use toh rabt hai
sadiyon purane gham gusaron se
koi toh usko samjhaye
Mohabbat mom hoti hai
kabhi aisa bhi hota hai
mohabbat mein
mohabbat se
mohabbat toot jati hai

(seema)

"Nazm" and "Ghazal" Published in Literary Magazine " Jahan Numa "


"Nazm" and "Ghazal" Published in Literary Magazine " Jahan Numa "
Ghazal 
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मोहब्बतों के हसीं पलों को , वो तितलियों का ख्याल देगा 
की ख्वाब सारे बस एक शब् में , वो मेरी आँखों में ढाल देगा

मैं रूठ जाउंगी लाख उस से ,मुझे मना ही वो लेगा आखिर
करीब आकर या मुस्कुराकर , मिज़ाज मेरा संभाल देगा

जो पल भी बीतेगा कुरबतों में , हसीं , चंचल सी चाहतों में
मुझे यकीन है की मेरे दिलबर ,वो मेरे माज़ी को हाल देगा

जो शख्स बिछडा है आज मुझ से बहार मोसम की इब्तदा मैं
कहा था उस ने की चाहतों को कभी ना रंग -ए -ज़वाल देगा

की ले के अंम्बर से वो सितारे जो मेरा आँचल सजा रहा था
किसे पता था की वही आँचल वो मेरी अर्थी पे डाल देगा

वो साथ होगा तो ये सफ़र भी आसानियों से कटेगा अपना
यकीन है मुझ को - मैं जानती हूँ वो सारे रास्ते उजाल देगा
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वो ,हम सुखन है वो हमसफर है तो कोई ग़म भी नहीं है सीमा
मैं जानती हूँ मिज़ाज अपना वो मेरे शेरों में ढाल देगा

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Nazm
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ऐ जाने -जहां ...
है तेरा ही ख्याल
तु मेरा शोक़ है कहाँ
तेरा शोके- तमाशा हूँ मैं
मेरे ज़ब्त का मुदावा है तु मगर
दश्ते -दिल में उतर आई है
फ़िराक के लम्हों की रौनकें कितनी
इक आलमे - बेक़रारी में
निगाह गाफ़िल है तुझसे
मुझ में तुझ से खुलते तो है
मजबूर तकाजों के दरीचे लेकिन
अब मैं हूँ तुझ से वाबसता
मेरी तन्हाई है
भीगी हुई रात का फूसुं है हर सू
लरजते रहते हैं मेरी पलकों पर
तेरी याद के शबनमी मोती
ऐ जाने -जहां ...

Poetry Published in Literary Magazine "शैल - सूत्र "


Poetry Published in Literary Magazine "शैल - सूत्र "
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उस को देखूं तो ये दिल और धडकता क्यों है
अक्स उसका मेरी आँखों में बिखरता क्यों है
गुफ्तुगू में जो तेरा ज़िक्र कभी आ जाए
दर्द तुफां की तरह दिल में मचलता क्यों है
रात भर चाँद ने चूमी है तेरी पेशानी
उसको अफ़सोस है सूरज ये निकलता क्यों है
वो ना इज़हार करे बात अलग है लेकिन
देख कर मुझ को वो भला और संवरता क्यों है
किस लिए फैला है हसरत का धुवां चारों तरफ
दिल से एक आह का शोला ये निकलता क्यों है
सोचती रहती हूँ फुर्सत में यही मैं "सीमा "
काम जो होना है आखिर वोही टलता क्यों है
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us ko dekhon toh ye dil or dharakta kyun hai
aks iska meri aankhon meiN bikharta kiyoN hai
guftugu mein jo tera zikr kabhi aa jaaye
dard toofaaN ki tarah dil meiN machalta kyuN hai
raat bhar chand ne choomi hai teri peshaani
us ko afsos hai sooraj ye nikalta kyuN hai
woh na izhar kary baat elag hain lekan
dekh kr mujh ko woh bhala or sanwarta kyun hai
kis liye phaila hai hasrat ka dhuaaN charoN taraf
Dil se ek aah ka shola ye nikalta kyuN hai
sochti rehti hooN fursat mei yehi maiN "Seema"
kaam jo hona hai aakhir wohi tal-taa kyuN hai

Poetry Published in Literary Magazine "साहित्य वाटिका"


वही मेरी आँखों का काजल रहा है ,
हमेशा जो नज़रों से ओझल रहा है ।

जहाँ हसरतों की शमा बुझ रही है ,
वहीँ आरज़ू का दिया जल रहा है । 

मेरी खेतियाँ सूखती जा रही हैं ,
गुरेज़ाँ सदा से ही बादल रहा है ।

वही आज मुझसे है बेज़ार सा कुछ ,
कभी मेरी ख़ातिर जो पागल रहा है ।

सफ़र ज़िन्दगी का था दुश्वार लेकिन
हर इक मोड़ पर माँ का संबल रहा है

दिया मुझको सीमा सभी कुछ है रब ने ,
करम मुझपे उसका मुकम्मल रहा है
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ना ज़मीं का न वो आसमानों का है ,
शौक़ जिसको मुसलसल उड़ानों का है ।

उसको देखूं तो लगता है ऐसा मुझे ,
ये बनाया हुआ कारखानों का है ।

नापलीं उसने सारी ही ऊँचाईयाँ ,
रास्ता बाद इसके ढलानों का है ।

हमको सच बोलने की मिली है सज़ा ,
ये करिश्मा भी झूठे बयानों का है ।

लोग रहते थे *सीमा * जहां कल तलक ,
सिल्सिला दूर तक अब मकानों का है

Poetry Published on 1st Sept 2014 in one of leading news paper " Utkarsh Mail" from Delhi

Poetry Published on 1st Sept 2014 in one of leading news paper " Utkarsh Mail" from Delhi
"हवाओं के जेवर "
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मौसम के खजाने से
एक लम्हा बहारो का
दिल करता है चुरा लाऊं
बारिशों के घुंघरू
हवाओं के जेवर
शाखाओं की हंसी
फिजाओं की झालर
पगडंडियों की सांसो को
छु कर कभी देखा ही नहीं …..

Hawaon ke zewar
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Mausam ke khazane se
Ek lamha baharon ka
Dil karta hai chura laun
Barishon ke ghungroo
Hawaon ke zewar
Shakhaon ki hansi
Fizaon ki jhala
Pagdandiyon ki sanson ko
chu kar kabhi dekha hi nahi..
.

"Poetry’s Published in Magazine "AAP ABHI TAK”



"Poetry’s Published on  6th Aug 2014 in Magazine "AAP ABHI TAK”
1. "झील को दर्पण बना"
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रात के स्वर्णिम पहर में
झील को दर्पण बना
चाँद जब बादलो से निकल
श्रृंगार करता होगा
चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी...
मस्त पवन की अंगडाई
दरख्तों के झुरमुट में छिप कर
परिधान बदल बदल
मन को गुदगुदाती तो होगी.....
नदिया पुरे वेग मे बह
किनारों से टकरा टकरा
दीवाने दिल के धड़कने का
सबब सुनाती तो होगी .....
खामोशी की आगोश मे रात
जब पहरों में ढलती होगी
ओस की बूँदें दूब के बदन पे
फिसल लजाती तो होगी ......
दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
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2. "चाँद मुझे लौटा दो ना
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चंदा से झरती
झिलमिल रश्मियों के बीच
एक अधूरी मखमली सी
ख्वाइश का सुनहरा बदन
होले से सुलगा दो ना
इन पलकों में जो ठिठकी है
उस सुबह को अपनी आहट से
एक बार जरा अलसा दो ना
बेचैन उमंगो का दरिया
पल पल अंगडाई लेता है
आकर फिर सहला दो ना
छु कर के अपनी सांसो से
मेरे हिस्से का चाँद कभी
मुझको भी लौटा दो ना

Sunday, July 13, 2014

Publication in "NETHERLAND"in Literary magazine " Amstel Ganga"

 Poetry Published in HOLAND (Netherlands) in Literary magazine " Amstel Ganga" JULY - SEPT 2014 Edition

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"पल रिसता रहा"
प्रेम पराकाष्ठा की परिधि को
जिस पल ने था पार किया
वो शरमा के सिमट गया
जिस में भरा
आक्रोश था, तकरार थी
वो पल विद्रोह कर
चला गया
जिस ने सही
क्रोध की पीड़ा
वो अश्रुओं संग
क्षितिज में विलीन हुआ
विरह अग्नि में
जो अभिशप्त हुआ
और झुलस गया
वो अभागा "पल रिसता रहा..."
---------------------------
Pal Rista Raha

Prem Prakashta ki paridhi ko
jis pal ne tha paar kiya
vo shama ke simat gaya
jis mein bhara
akrosh tha, takrar thi
vo pal vidroh kar
chala gya
jis ne sahi
krodh ki pida
vo ashruon sang
kshitij mein vilin hua
virah agni mein
jo abhishapt hua
or julas gaya
vo abhaga Pal Rista Raha.....

Sunday, July 6, 2014

“सीमा गुप्ता एक खुश फ़िक्र और खूबसूरत शायरा (तितलियों का ख़याल के आईने में)”

“सीमा गुप्ता एक खुश फ़िक्र और खूबसूरत शायरा (तितलियों का ख़याल के आईने में)”

Mazmoon on my Poetry book "“TITLIYON KA KHYAAL" written by Saalim Shuja Ansari ji published today 6th july in Urdu news paper "AZIZULHIND" from Delhi 


Thursday, July 3, 2014

"Poetry Published in July 2014 Edition in Literary Magazine " ARPITA"

"पल रिसता रहा"
प्रेम पराकाष्ठा की परिधि को
जिस पल ने था पार किया
वो शरमा के सिमट गया 
जिस में भरा
आक्रोश था, तकरार थी
वो पल विद्रोह कर
चला गया
जिस ने सही
क्रोध की पीड़ा
वो अश्रुओं संग
क्षितिज में विलीन हुआ
विरह अग्नि में
जो अभिशप्त हुआ
और झुलस गया
वो अभागा "पल रिसता रहा..."

Pal Rista Raha 

Prem Prakashta ki paridhi ko 
jis pal ne tha paar kiya
vo shama ke simat gaya
jis mein bhara
akrosh tha, takrar thi
vo pal vidroh kar
chala gya
jis ne sahi 
krodh ki pida
vo ashruon sang 
kshitij mein vilin hua
virah agni mein 
jo abhishapt hua
or julas gaya
vo abhaga Pal Rista Raha............

Tuesday, July 1, 2014

"Poetry / Ghazal Published today i.e 1st July 2014 in one of leading news paper " Utkarsh Mail" from Delhi .

"Poetry / Ghazal Published today i.e 1st July 2014 in one of leading news paper " Utkarsh Mail" from Delhi .
मेरा ये इतिहास रहा
तेरे बिन बनवास रहा

आया जब भी चाँद नज़र
तेरा ही आभास रहा

आँखें तो वीरान रहीं
सपनो में मधुमास रहा

नादानों की कदर हुई
दाना का उपहास रहा

बातें सब खामोश रही
चेहरे पे उल्लास रहा

पूजा - अर्चन सब भूल गयी
हर पल तू ही पास रहा
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Mera ye itihaas raha
Tere bin banvaas raha
Aaya jab bhi chand nazar 
Tera hi aabash raha
Ankhen to veeran rahin
Sapno mein madhumas raha
Nadano ki kadar hui
Dana ka uphaas raha
Batein sab khamosh rahi
Chehro par ullaas raha
Pooja archan sab bhul gyi
Har pal tu hi pass raha

Ghazal Published in अनहद कृति" June 2014


Ghazal Published in Literary Magazine 'अनहद कृति" Edition 24th JUNE 2014

सौदाए -इश्क़ के तो ख़तावार हम नहीं ,
हैं इश्क़ के मरीज़ गुनहगार हम नहीं । 

उसकी ख़ुशी के वास्ते खुद को फ़ना किया ,
फिर भी वो कह रहा के वफ़ादार हम नहीं । 

दिल में हमारे एक तलातुम सा है बापा ,
ख़ामोश हैं के ज़ीनते - अख़बार हम नहीं । 

तन्हाइयों की हमने ही दुनिया बसाई है ,
गोशे में खुदके हैं ,सरे -बाज़ार हम नहीं । 

दिल से किया है इश्क़ का सौदा तो फ़िक्र क्या ,
एहले - जुनूँ ज़रूर हैं बीमार हम नहीं । 

सहरा के सर्दो -गर्म ही अब रास आ गए ,
सीमा किसी चमन के रवादार हम नहीं । 

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Sauda - ye- ishq ke to khatawar hum nahi'n
hain ishq ke mareez gunahgar hum nahi'n

uski khushi ke waste khud ko fana kiya 
fir bhi woh keh raha hai ki wafadar hum nahi'n

dil mein hamare ek tala tum sa hai bapa
khamosh hain ki zenit -e -akhbar hum nahi'n

tanhaiyon ki humne hi duniya basai hai
Goshe mein khud ke hain, sare bazar hum nahi'n

dil se kiya hai ishq ka sauda to fikr kya
ahle junoon zaroor hai bimar hum nahi'n

Sehra ke sardo garm hi ab raas aa gaye
Seema kisi chaman ke rawadar ham nahi'n

Monday, June 16, 2014

"Poetry "Geet" Published in one of leading news paper " Utkarsh Mail" from Delhi .

"Poetry "Geet" Published today i.e 16th June 2014 in one of leading news paper " Utkarsh Mail" from Delhi .


"गीत"

"मैंने जो गीत तेरे प्यार की खातिर लिखे "
आज दुनिया की नज़र उनका पता पाएगी,
किस तरह चाहा है पूजा है सराहा है तुम्हें 
प्यार की दुनिया में तारीख लिखी जायेगी
तेरे चेहरे की तमानत ये सदा देती है
प्यार खिलता है तो चेहरे से अयाँ होता है
कोई जब जन्मो के रिश्तों से बंधा होता है 
उसका सम्बन्ध हर एक गाम बयाँ होता है
"GEET"
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"Maine jo geet tere pyar ki Khatir likhe"
aaz duniya ki nazar unka pata payegi 

kis tarah chaha hai pooja hai saraha hai tumhe
pyar ki duniya mein tareekh likhi jayegi

tere chehre ki tmanat ye sada deti hai
pyar khilta hai to chehre se aya'n hota hai

koi jab janmon ke rishton se bandha hota hai
uska sambandh har ek gaon bayan hota hai

Wednesday, April 30, 2014

“TITLIYON KA KHYAAL"



 “TITLIYON KA KHYAAL"


With the Grace of God Third collection of Ghazal and Nazm " “TITLIYON KA KHYAAL" is being published from  Mandvi Praksashan.
ISBN-81-8212-037-3 / Price- 200/-

Wednesday, April 23, 2014

Poetry Published in " Amstel Ganga" HOLAND (Netherlands)

नर्म लिहाफ़
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सियाह रात का एक क़तरा जब

आँखों के बेचैन दरिया की
कशमकश से उलझने लगा,
बस वही एक शख्स अचानक
मेरे सिराहने पे मुझसे आ के मिला|

मैं ठिठक कर उसके एहसास को
छूती टटोलती आँचल में छुपा
रूह के तहख़ाने में, सहेज लेती हूँ
कुछ हसरतें नर्म लिहाफ़ में
डूबके मचलने लगती हैं,
जब वही एक शख्स अचानक
मेरे सिराहने पे मुझसे आ के मिला|

कुछ मजबूरियों की पगडंडियाँ
जो मेरे शाने पे उभर आती हैं,
अपने ही यक़ीन के स्पर्श की
सुगबुगाहट से हट,
चाँद के साथ मेरी हथेलियों में
चुपके-चुपके से सिमटने लगती हैं,
सच वही बस वही एक शख्स जब अचानक
मेरे सिराहने पे मुझसे आ के मिला।

Ghazal Published in "Adabi Dehliz" April - June 2014

सौदाए -इश्क़ के तो ख़तावार हम नहीं ,
हैं इश्क़ के मरीज़ गुनहगार हम नहीं । 
हम जो खटक रहे थे तुम्हारी निगाह में ,
"लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं"
उसकी ख़ुशी के वास्ते खुद को फ़ना किया ,
फिर भी वो कह रहा के वफ़ादार हम नहीं ।
दिल में हमारे एक तलातुम सा है बापा ,
ख़ामोश हैं के ज़ीनते - अख़बार हम नहीं ।
तन्हाइयों की हमने ही दुनिया बसाई है ,
गोशे में खुदके हैं ,सरे -बाज़ार हम नहीं ।
दिल से किया है इश्क़ का सौदा तो फ़िक्र क्या ,
एहले - जुनूँ ज़रूर हैं बीमार हम नहीं ।
सहरा के सर्दो -गर्म ही अब रास आ गए ,
सीमा किसी चमन के रवादार हम नहीं ।
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मेरे चेहरे पे जो कहानी है
मेरे दिल ही की तर्जुमानी है
नींद आँखों में जागती ही रही
गरचे रातों की ख़ाक छानी है
उसकी सूरत ग़ज़ल में ढाली है
उस में तस्वीर अब बनानी है
दो घडी के लिए ही आ जाओ
छोडिये जो भी बदगुमानी है
जोड़ना दिल से दिल नहीं मुश्किल
एक दीवार बस गिरानी है
इस में खुशियाँ बिखेर दे सीमा
चार दिन के ये जिंदगानी है..

Wednesday, April 16, 2014

मेरे चेहरे पे जो कहानी है

"Ghazal Published in News paper 'Gurgaon Today" http://epaper.gurgaontoday.in/16042014/page/6 "

मेरे चेहरे पे जो कहानी है 
मेरे दिल  ही की  तर्जुमानी है 
नींद आँखों में जागती ही रही 
गरचे रातों की ख़ाक छानी  है 
उसकी सूरत ग़ज़ल में ढाली है 
उस में  तस्वीर अब बनानी है 
दो घडी के लिए ही आ जाओ 
छोडिये जो भी बदगुमानी है 
जोड़ना दिल से दिल नहीं मुश्किल 
एक दीवार बस  गिरानी है 
इस में खुशियाँ बिखेर दे सीमा 
चार दिन के ये जिंदगानी है 

Mere chehre pe jo kahani hai
Mere dil hi ki tarjumani hai
Neend aankhon main jaagti hi rahi
Garche raaton ki khak chhani hai
Uski suurat ghazal main Dhali hai
Us main tasveer ab banani hai
Do ghaRi keliye hi aa jaa'o
ChoRiye, jo bhi bad-gumani hai
JoRna dil se dil naheen mushkil
Aik deevaar bas girani hai
Is main khushiyaan bakhair de 'seema'
Chaar din ki yeh zindgani hai

Tuesday, April 1, 2014

Agonizing picture of Rural Life

Exclusive Interview of Seema Gupta in April 2014 issue of Rural & Marketing Magazine "Agonizing picture of Rural Life" Page 76


Wednesday, March 12, 2014

15th स्त्री शक्ति राष्ट्रिय सम्मान

5th Stree Shakti National Awards" Organized by GANTAVAYA SANSTHAN, Seema Gupta is being Felicitated for outstanding contributions in the field of Literature, Business and Trade on 12 March 2014 at Constitution Club, New Delhi .

Thursday, March 6, 2014

"Appreciation Certificate" "DELHI INTERNATIONAL FILM FESTIVAL" IN DEC 2013

"Appreciation Certificate" to Seema Gupta in  Poet of the Year (India) for Outstanding Contribution as a participant in Poetry Event in "DELHI INTERNATIONAL FILM FESTIVAL" IN DEC 2013

Sunday, January 19, 2014

Ghazal Published in अनहद कृति" 25th December 2013

Ghazal Published in Literary Magazine 'अनहद कृति"
Edition 25th December 2013 

अच्छा -अच्छा हो सब कुछ दुआ कीजिये ,
कोई दिल न दुखे प्रार्थना कीजिये । 

उम्र भर की खताओं को बख्शिश मिले
एक सजदा तो ऐसा अदा कीजिये । 

कोइ दुश्मन नहीं दोस्त हैं सब यहाँ ,
जितना मुम्किन हो सबका भला कीजिये । 

कितने भगवान् हैं एक सर के लिए ,
पत्थरों को कहाँ तक खुदा कीजिये 

कौन है बेवफ़ा , बावफ़ा कौन है ,
सामने बैठकर फैसला कीजिये । 

रौशनी मेरी आँखों को देता है जो ,
उसको नज़रों से कैसे जुदा कीजिये । 

क़ैद अपने में *सीमा * न हो जाइये 
चार लोगों में बैठा - उठा कीजिये ।

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Acha acha ho sab kuch dua kijiye
Koi dil na dukhe prarthana kijiye
Umar bhar ki khatao'n ko bakshish mile
Ek sajda to aisa ada kijiye
Koi dushman nahi dost hain sab yahan
Jitna mumkin ho sabka bhala kijiye
Kiitne bhagwan hain ek sar ke liye
Pathron ko kahan tak khuda kijiye
Kaun hai bewafa , bawafa kaun hai
Saamne baith kar faisla kijiye
Roshni meri aankho'n ko deta hai jo
Usko nazro'n se kaise juda kijiye
Qaid apne mein "Seema" na ho jaiye
Char logo'nn mein baitha utha kijiye 

"दिसम्बर बहता है " urdu literary magazine "Taryaq " Dec 2013"

" Poetry Published in one of famous urdu literary magazine "Taryaq " Dec 2013"

"दिसम्बर बहता है " 
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दश्त-ए -दर्द के मंज़र 
खुश्क हवाओं के लश्कर
ज़र्द पत्तों की आहट
रगे लहू मौसम मौसम
दिसम्बर बहता है .....
बिखरते हैं
नर्म हथेलियों पे शबनम की तरह
तुम्हारे लम्स के सराब
दहकते हैं पलाश
मेरे माज़ी में गये दिनों की तरह
दिसम्बर रहता है ...........
शाम की शफक उदासी बैचेनी
है वो कौन जो ढूँढता है मुझे
अब भी तू नहीं , तब भी तू नहीं
दिसम्बर कहता है ..........
बहती नदिया के उस पार
खुश्क पत्ते , सराबोर रूहें
इश्क की मुन्तजिर आँखों में
अश्कों की तरह धीरे धीरे
दिसम्बर बहता है ...........

"दिसम्बर बहता है " Published in 'अनहद कृति" 25th December 2013

Poetry Published in Literary Magazine 'अनहद कृति"
Edition 25th December 2013 
"दिसम्बर बहता है " 

"दिसम्बर बहता है " 
----------------------
दश्त-ए -दर्द के मंज़र 
खुश्क हवाओं के लश्कर
ज़र्द पत्तों की आहट
रगे लहू मौसम मौसम
दिसम्बर बहता है .....
बिखरते हैं
नर्म हथेलियों पे शबनम की तरह
तुम्हारे लम्स के सराब
दहकते हैं पलाश
मेरे माज़ी में गये दिनों की तरह
दिसम्बर रहता है ...........
शाम की शफक उदासी बैचेनी
है वो कौन जो ढूँढता है मुझे
अब भी तू नहीं , तब भी तू नहीं
दिसम्बर कहता है ..........
बहती नदिया के उस पार
खुश्क पत्ते , सराबोर रूहें
इश्क की मुन्तजिर आँखों में
अश्कों की तरह धीरे धीरे
दिसम्बर बहता है ...........

"DECEMBER BEHTA HAI "
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Dasht-e-Dard ke manzar
Khushk hawaon ke lashkar
zard patton ki aahat
rag-e-laho mosam mosam
December behta hai .........
bikharte hain
narm hatheli pe shabnam ki tarah
tumhare lams ke saraab
dehakte hain palash
mere mazi mein gayay dino ki tarah
December rehta hai ................
shaam ki shafaq udasi bechaini
hai woh koun jo dhoondtha hai mujhay
Ab bhi tu nahee, tab bhi tu nahee........
December kehta hai.............
behti nadiya ke uos paar
kushk pattay sharaboor roohain
Ishq jo muntazir ankhon mein
ashkon ki tarah dhire dhire
December behta hai........
...........