Wednesday, April 30, 2014

“TITLIYON KA KHYAAL"



 “TITLIYON KA KHYAAL"


With the Grace of God Third collection of Ghazal and Nazm " “TITLIYON KA KHYAAL" is being published from  Mandvi Praksashan.
ISBN-81-8212-037-3 / Price- 200/-

Wednesday, April 23, 2014

Poetry Published in " Amstel Ganga" HOLAND (Netherlands)

नर्म लिहाफ़
--------------
सियाह रात का एक क़तरा जब

आँखों के बेचैन दरिया की
कशमकश से उलझने लगा,
बस वही एक शख्स अचानक
मेरे सिराहने पे मुझसे आ के मिला|

मैं ठिठक कर उसके एहसास को
छूती टटोलती आँचल में छुपा
रूह के तहख़ाने में, सहेज लेती हूँ
कुछ हसरतें नर्म लिहाफ़ में
डूबके मचलने लगती हैं,
जब वही एक शख्स अचानक
मेरे सिराहने पे मुझसे आ के मिला|

कुछ मजबूरियों की पगडंडियाँ
जो मेरे शाने पे उभर आती हैं,
अपने ही यक़ीन के स्पर्श की
सुगबुगाहट से हट,
चाँद के साथ मेरी हथेलियों में
चुपके-चुपके से सिमटने लगती हैं,
सच वही बस वही एक शख्स जब अचानक
मेरे सिराहने पे मुझसे आ के मिला।

Ghazal Published in "Adabi Dehliz" April - June 2014

सौदाए -इश्क़ के तो ख़तावार हम नहीं ,
हैं इश्क़ के मरीज़ गुनहगार हम नहीं । 
हम जो खटक रहे थे तुम्हारी निगाह में ,
"लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं"
उसकी ख़ुशी के वास्ते खुद को फ़ना किया ,
फिर भी वो कह रहा के वफ़ादार हम नहीं ।
दिल में हमारे एक तलातुम सा है बापा ,
ख़ामोश हैं के ज़ीनते - अख़बार हम नहीं ।
तन्हाइयों की हमने ही दुनिया बसाई है ,
गोशे में खुदके हैं ,सरे -बाज़ार हम नहीं ।
दिल से किया है इश्क़ का सौदा तो फ़िक्र क्या ,
एहले - जुनूँ ज़रूर हैं बीमार हम नहीं ।
सहरा के सर्दो -गर्म ही अब रास आ गए ,
सीमा किसी चमन के रवादार हम नहीं ।
-------------------------------------------------
मेरे चेहरे पे जो कहानी है
मेरे दिल ही की तर्जुमानी है
नींद आँखों में जागती ही रही
गरचे रातों की ख़ाक छानी है
उसकी सूरत ग़ज़ल में ढाली है
उस में तस्वीर अब बनानी है
दो घडी के लिए ही आ जाओ
छोडिये जो भी बदगुमानी है
जोड़ना दिल से दिल नहीं मुश्किल
एक दीवार बस गिरानी है
इस में खुशियाँ बिखेर दे सीमा
चार दिन के ये जिंदगानी है..

Wednesday, April 16, 2014

मेरे चेहरे पे जो कहानी है

"Ghazal Published in News paper 'Gurgaon Today" http://epaper.gurgaontoday.in/16042014/page/6 "

मेरे चेहरे पे जो कहानी है 
मेरे दिल  ही की  तर्जुमानी है 
नींद आँखों में जागती ही रही 
गरचे रातों की ख़ाक छानी  है 
उसकी सूरत ग़ज़ल में ढाली है 
उस में  तस्वीर अब बनानी है 
दो घडी के लिए ही आ जाओ 
छोडिये जो भी बदगुमानी है 
जोड़ना दिल से दिल नहीं मुश्किल 
एक दीवार बस  गिरानी है 
इस में खुशियाँ बिखेर दे सीमा 
चार दिन के ये जिंदगानी है 

Mere chehre pe jo kahani hai
Mere dil hi ki tarjumani hai
Neend aankhon main jaagti hi rahi
Garche raaton ki khak chhani hai
Uski suurat ghazal main Dhali hai
Us main tasveer ab banani hai
Do ghaRi keliye hi aa jaa'o
ChoRiye, jo bhi bad-gumani hai
JoRna dil se dil naheen mushkil
Aik deevaar bas girani hai
Is main khushiyaan bakhair de 'seema'
Chaar din ki yeh zindgani hai

Tuesday, April 1, 2014

Agonizing picture of Rural Life

Exclusive Interview of Seema Gupta in April 2014 issue of Rural & Marketing Magazine "Agonizing picture of Rural Life" Page 76