Wednesday, December 3, 2014

Poetry Published in Literary Magazine 'अनहद कृति" Edition 2nd OCT 2014

" नज़्म " "मोहब्बत मोम होती है "
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सुना है उसकी आँखों से 
हमेशा बर्फ गिरती है
वो जब खामोश होती है
क़यामत काँप जाती है
वो अपने पावं के छालों पे
मरहम भी नहीं रखती
वो अपने जिस्म -ओ - जां में
इश्क़ की सरहद नहीं रखती
उसे मतलब नहीं
बाम-ए-फ़लक के चाँद तारों से
उसे तो रब्त है
सदियों पुराने ग़म गुसारों से
कोई तो उसको समझाए
मोहब्बत मोम होती है
कभी ऐसा भी होता है
मोहब्बत में
मोहब्बत से
मोहब्बत टूट जाती है
मोहब्बत......... टूट ........................... जाती है
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"Nazm"
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Suna hai uski aankhon se
hmesha barf girti hai
wo jab khaamosh hoti hai
Qayamat kaanp jaati hai
wo apne paon ke chaalo'n pe
Marham bhi nahi rakhti
wo apne jism-o-jaan pe
ishq ki sarhad nahi rakhti
use matlab nahi'n
baam-e-falak ke chaand taro'n se
use toh rabt hai
sadiyon purane gham gusaron se
koi toh usko samjhaye
Mohabbat mom hoti hai
kabhi aisa bhi hota hai
mohabbat mein
mohabbat se
mohabbat toot jati hai

(seema)

"Nazm" and "Ghazal" Published in Literary Magazine " Jahan Numa "


"Nazm" and "Ghazal" Published in Literary Magazine " Jahan Numa "
Ghazal 
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मोहब्बतों के हसीं पलों को , वो तितलियों का ख्याल देगा 
की ख्वाब सारे बस एक शब् में , वो मेरी आँखों में ढाल देगा

मैं रूठ जाउंगी लाख उस से ,मुझे मना ही वो लेगा आखिर
करीब आकर या मुस्कुराकर , मिज़ाज मेरा संभाल देगा

जो पल भी बीतेगा कुरबतों में , हसीं , चंचल सी चाहतों में
मुझे यकीन है की मेरे दिलबर ,वो मेरे माज़ी को हाल देगा

जो शख्स बिछडा है आज मुझ से बहार मोसम की इब्तदा मैं
कहा था उस ने की चाहतों को कभी ना रंग -ए -ज़वाल देगा

की ले के अंम्बर से वो सितारे जो मेरा आँचल सजा रहा था
किसे पता था की वही आँचल वो मेरी अर्थी पे डाल देगा

वो साथ होगा तो ये सफ़र भी आसानियों से कटेगा अपना
यकीन है मुझ को - मैं जानती हूँ वो सारे रास्ते उजाल देगा
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वो ,हम सुखन है वो हमसफर है तो कोई ग़म भी नहीं है सीमा
मैं जानती हूँ मिज़ाज अपना वो मेरे शेरों में ढाल देगा

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Nazm
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ऐ जाने -जहां ...
है तेरा ही ख्याल
तु मेरा शोक़ है कहाँ
तेरा शोके- तमाशा हूँ मैं
मेरे ज़ब्त का मुदावा है तु मगर
दश्ते -दिल में उतर आई है
फ़िराक के लम्हों की रौनकें कितनी
इक आलमे - बेक़रारी में
निगाह गाफ़िल है तुझसे
मुझ में तुझ से खुलते तो है
मजबूर तकाजों के दरीचे लेकिन
अब मैं हूँ तुझ से वाबसता
मेरी तन्हाई है
भीगी हुई रात का फूसुं है हर सू
लरजते रहते हैं मेरी पलकों पर
तेरी याद के शबनमी मोती
ऐ जाने -जहां ...

Poetry Published in Literary Magazine "शैल - सूत्र "


Poetry Published in Literary Magazine "शैल - सूत्र "
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उस को देखूं तो ये दिल और धडकता क्यों है
अक्स उसका मेरी आँखों में बिखरता क्यों है
गुफ्तुगू में जो तेरा ज़िक्र कभी आ जाए
दर्द तुफां की तरह दिल में मचलता क्यों है
रात भर चाँद ने चूमी है तेरी पेशानी
उसको अफ़सोस है सूरज ये निकलता क्यों है
वो ना इज़हार करे बात अलग है लेकिन
देख कर मुझ को वो भला और संवरता क्यों है
किस लिए फैला है हसरत का धुवां चारों तरफ
दिल से एक आह का शोला ये निकलता क्यों है
सोचती रहती हूँ फुर्सत में यही मैं "सीमा "
काम जो होना है आखिर वोही टलता क्यों है
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us ko dekhon toh ye dil or dharakta kyun hai
aks iska meri aankhon meiN bikharta kiyoN hai
guftugu mein jo tera zikr kabhi aa jaaye
dard toofaaN ki tarah dil meiN machalta kyuN hai
raat bhar chand ne choomi hai teri peshaani
us ko afsos hai sooraj ye nikalta kyuN hai
woh na izhar kary baat elag hain lekan
dekh kr mujh ko woh bhala or sanwarta kyun hai
kis liye phaila hai hasrat ka dhuaaN charoN taraf
Dil se ek aah ka shola ye nikalta kyuN hai
sochti rehti hooN fursat mei yehi maiN "Seema"
kaam jo hona hai aakhir wohi tal-taa kyuN hai

Poetry Published in Literary Magazine "साहित्य वाटिका"


वही मेरी आँखों का काजल रहा है ,
हमेशा जो नज़रों से ओझल रहा है ।

जहाँ हसरतों की शमा बुझ रही है ,
वहीँ आरज़ू का दिया जल रहा है । 

मेरी खेतियाँ सूखती जा रही हैं ,
गुरेज़ाँ सदा से ही बादल रहा है ।

वही आज मुझसे है बेज़ार सा कुछ ,
कभी मेरी ख़ातिर जो पागल रहा है ।

सफ़र ज़िन्दगी का था दुश्वार लेकिन
हर इक मोड़ पर माँ का संबल रहा है

दिया मुझको सीमा सभी कुछ है रब ने ,
करम मुझपे उसका मुकम्मल रहा है
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ना ज़मीं का न वो आसमानों का है ,
शौक़ जिसको मुसलसल उड़ानों का है ।

उसको देखूं तो लगता है ऐसा मुझे ,
ये बनाया हुआ कारखानों का है ।

नापलीं उसने सारी ही ऊँचाईयाँ ,
रास्ता बाद इसके ढलानों का है ।

हमको सच बोलने की मिली है सज़ा ,
ये करिश्मा भी झूठे बयानों का है ।

लोग रहते थे *सीमा * जहां कल तलक ,
सिल्सिला दूर तक अब मकानों का है

Poetry Published on 1st Sept 2014 in one of leading news paper " Utkarsh Mail" from Delhi

Poetry Published on 1st Sept 2014 in one of leading news paper " Utkarsh Mail" from Delhi
"हवाओं के जेवर "
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मौसम के खजाने से
एक लम्हा बहारो का
दिल करता है चुरा लाऊं
बारिशों के घुंघरू
हवाओं के जेवर
शाखाओं की हंसी
फिजाओं की झालर
पगडंडियों की सांसो को
छु कर कभी देखा ही नहीं …..

Hawaon ke zewar
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Mausam ke khazane se
Ek lamha baharon ka
Dil karta hai chura laun
Barishon ke ghungroo
Hawaon ke zewar
Shakhaon ki hansi
Fizaon ki jhala
Pagdandiyon ki sanson ko
chu kar kabhi dekha hi nahi..
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"Poetry’s Published in Magazine "AAP ABHI TAK”



"Poetry’s Published on  6th Aug 2014 in Magazine "AAP ABHI TAK”
1. "झील को दर्पण बना"
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रात के स्वर्णिम पहर में
झील को दर्पण बना
चाँद जब बादलो से निकल
श्रृंगार करता होगा
चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी...
मस्त पवन की अंगडाई
दरख्तों के झुरमुट में छिप कर
परिधान बदल बदल
मन को गुदगुदाती तो होगी.....
नदिया पुरे वेग मे बह
किनारों से टकरा टकरा
दीवाने दिल के धड़कने का
सबब सुनाती तो होगी .....
खामोशी की आगोश मे रात
जब पहरों में ढलती होगी
ओस की बूँदें दूब के बदन पे
फिसल लजाती तो होगी ......
दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
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2. "चाँद मुझे लौटा दो ना
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चंदा से झरती
झिलमिल रश्मियों के बीच
एक अधूरी मखमली सी
ख्वाइश का सुनहरा बदन
होले से सुलगा दो ना
इन पलकों में जो ठिठकी है
उस सुबह को अपनी आहट से
एक बार जरा अलसा दो ना
बेचैन उमंगो का दरिया
पल पल अंगडाई लेता है
आकर फिर सहला दो ना
छु कर के अपनी सांसो से
मेरे हिस्से का चाँद कभी
मुझको भी लौटा दो ना