Tuesday, June 6, 2017

http://www.setumag.com/2017/05/Seema-Gupta-Ghazal.html
Poetry published in Bilingual journal published from Pittsburgh, USA :: पिट्सबर्ग अमेरिका से प्रकाशित द्वैभाषिक
मुसलसल आह भरती जा रही हूँ 
दुआएँ रोज़ करती जा रही हूँ 

ख़फा हो कर ख़ुशी से जी रहा है 
मै जिस पे रोज़ मरती जा रही हूँ 

खुद अपनी जात पे इलज़ाम दे कर
ना जाने क्यों बिखरती जा रही हूँ

वहां दरया रवां है रेत का बस
जहाँ से मैं गुज़रती जा रही हूँ

बहुत है होंसला उल्फ़त में मुझको
मगर दुनिया से डरती जा रही हूँ

किनारे पर खड़ी हूँ या के मै भी
समंदर में उतरती जा रही हूँ

ग़ज़ल का आइना है रूबरू अब
ख्यालों में संवरती जा रही हूँ

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